नई दिल्ली
देश में इन दिनों राजद्रोह कानून चर्चा में बना हुआ है, देश में राजद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट में बहस जारी है। साल 2014 से 2019 के बीच देश में औपनिवेशिक काल के विवादित देशद्रोह के कानून के तहत कुल 326 मामले दर्ज किए गए थे। इनमें से केवल 6 लोगों को दोषी ठहराया गया। यह जानकारी केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से मंगलवार को जारी आंकड़ों में सामने आई। आंकड़ों के अनुसार कुल 326 मामलों में से सबसे ज्यादा 54 मामले असम में दर्ज किए गए थे। असम में दर्ज किए गए 54 मामलों में से 26 में आरोप दाखिल हुए थे और 25 में मुकदमा पूरा हो गया।
राज्यों में 2014 से 2019 के बीच मामले
उत्तर प्रदेश में 2014 से 2019 के बीच 17 और पश्चिम बंगाल में राजद्रोह के 8 मामले दर्ज किए गए। उत्तर प्रदेश में 8 मामलों में और पश्चिम बंगाल में 5 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किए गए, दोनों राज्यों में किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया था। हरियाणा में राजद्रोह कानून के तहत 19 मामलों में आरोपपत्र दाखिल करने के साथ 31 मामले दर्ज किए गए और 6 मामलों में सुनवाई पूरी हुई। सिर्फ एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया। कर्नाटक में ऐसे 22 मामले दर्ज किए गए थे और आरोपपत्र 17 मामलों में दाखिल हुए थे। दिल्ली में 4 मामले दर्ज किए गए। किसी भी मामले में आरोपपत्र दाखिल नहीं हुआ और किसी को दोषी ठहराया गया। झारखंड ने 40 मामले दर्ज किए, जिनमें से 29 मामलों में आरोप पत्र दाखिल किए गए और 16 मामलों में मुकदमा पूरा हो गया। राज्य में दर्ज इन सभी मामलों में से केवल एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया।
राज्यों में राजद्रोह के आंकड़े
आंकड़ों के अनुसार साल 2019 में देश में राजद्रोह के सबसे ज्यादा 93 मामले दर्ज किए गए. वर्ष 2018 में, ऐसे 70 मामले दर्ज किए गए, उसके बाद 2017 में 51, 2014 में 47, 2016 में 35 और 2015 में 30 मामले दर्ज किए गए | 2019 में यह आंकड़ा 3.3 फीसद, 2018 में 15.4 फीसद, 2017 में 16.7 फीसद और 2016 में कुल 33.3 फीसद लोगों पर आरोप साबित हुआ
सुप्रीम कोर्ट का राजद्रोह कानून पर पुनर्विचार
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय से यह अनुरोध किया कि वह राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता का अध्ययन करने में समय नहीं लगाए। केंद्र सरकार ने कहा कि उसने उचित फोरम द्वारा राजद्रोह संबंधी कानून का पुन: अध्ययन और उस पर पुनर्विचार कराने का फैसला किया है। गृह मंत्रालय ने शीर्ष अदालत में दाखिल एक हलफनामे में कहा कि उसका निर्णय औपनिवेशिक चीजों से छुटकारा पाने के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारों के अनुरूप है और वह नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के सम्मान के पक्षधर रहे हैं तथा इसी भावना से 1,500 से अधिक अप्रचलित हो चुके कानूनों को समाप्त कर दिया गया है।