Babri Masjid Demolition Case: हाल ही में कुछ महीनों पहले फैसला आया कि अयोध्या में राम मंदिर (Ayodhya Ram Mandir) बनने वाला है। इसके लिए एक ट्रस्ट बनाया गया जो पैसा इकट्ठा करके राम मंदिर बनाने का कार्य सम्पन्न करवाएगा। लेकिन यह राम मंदिर जिस जगह पर बनने जा रहा है, वहां पर बाबरी मस्जिद हुआ करती थी। सोलवीं सदी की इस बाबरी मस्जिद को 6 दिसंबर को 1992 को कार सेवकों की एक भीड़ ने विध्वंस कर दिया। इसको लेकर देश में कई साम्प्रदायिक झगड़े भी हुए। न्यूज़पेपर से लेकर सोशल मीडिया के जमाने तक यह मुद्दा खत्म नहीं हुआ। आखिर में कोर्ट ने फैसला किया कि इस जगह पर श्री राम मंदिर बनाया जाएगा, क्योंकि इस जगह पर भगवान राम चंद्र जी का जन्म हुआ था और बाद में इसी राम मंदिर को तोड़कर क्रूर राजा ने बाबरी मस्जिद का निर्माण किया था।
बाबरी मस्जिद गिरने के बाद उस समय के प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव ने मस्जिद को दोबारा बनाने के निर्देश दिए गए, लेकिन 10 दिन बाद मस्जिद फिर से ढहा दी गयी। इसके बाद कथित षड्यंत्र की जांच के लिए जस्टिस एमएस लिब्राहन की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया गया। इस जांच आयोग ने 17 साल में अपनी रिपोर्ट तैयार करके दी। लेकिन अदालत के इस मामले में फैसला आने में इतना समय लग गया कि उससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद की जगह पर राम मंदिर बनाने का फैसला दे दिया। अब उस जगह पर राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण का कार्य भी शुरू हो चुका है। आइए बाबरी मस्जिद विध्वंसन केस को बारीकी से समझते हैं।
6 दिसंबर 1992 को दर्ज हुई दो एफ आई आर
कई दिनों से कार सेवा के लिए अयोध्या में डटे हुए कारसेवकों ने 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचे को गिरा दिया। उस दिन इस मामले में 2 FIR दर्ज की गयी। पहली FIR (संख्या 197/1992) कार सेवकों के खिलाफ थी जिसमें उन पर डकैती, लूट-पाट, चोट पहुंचाने, सार्वजनिक इबादत की जगह को नुक़सान पहुंचाने, धर्म के आधार पर दो धर्मों के लोगों के बीच शत्रुता बढ़ाने के आरोप लगे थे। वही दूसरी FIR (संख्या 198/1992) बीजेपी, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और आरएसएस से जुड़े 8 लोगों के ख़िलाफ़ थे, जिन्होंने रामकथा पार्क में मंच से भड़काऊ भाषण दिया था।
भड़काऊ भाषण देने वाले 8 लोग कौन थे?
बाबरी मस्जिद विध्वंसन का कारण उस समय भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और आरएसएस से जुड़े हुए कुछ लोगों का भड़काऊ भाषण माना जा रहा था, जिन्होंने दंगे पैदा किये थे। 6 दिसंबर 1992 के दिन दर्ज हुई FIR में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, वीएचपी के तत्कालीन महासचिव अशोक सिंघल, बजरंग दल के नेता विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, मुरली मनोहर जोशी, गिरिराज किशोर और विष्णु हरि डालमिया का नाम शामिल था।
पहली एफआईआर की जांच पड़ताल का काम सीबीआई को सौंपा गया, तो दूसरी FIR की जांच पड़ताल का काम CID को सौपा गया था। इसके बाद 1993 में दोनों FIRs को अन्य जगहों पर ट्रांसफर कर दिया गया था। कारसेवकों के खिलाफ दर्ज की गई पहली FIR की सुनवाई ललितपुर में एक स्पेशल कोर्ट में हुई, जिसका गठन किया गया था। वहीं भाषण देने वाले 8 नेताओं के खिलाफ दर्ज की गई दूसरी FIR की सुनवाई रायबरेली के विशेष अदालत में हुई।
लिब्राहन आयोग का योगदान क्या था?
बाबरी मस्जिद के विध्वंसन के मामले की जांच का काम लिब्राहन आयोग को दिया गया। लिब्राहन आयोग को यह काम 3 महीने के समय में करना था, लेकिन हर बार इसकी अवधि बढ़ा दी गई और ऐसा करते-करते यह मामला 17 सालों में 48 बार आगे खींच लिया गया। 30 जून 2009 को रिपोर्ट, मंत्रालय को सौपी गयी। रिपोर्ट में पाया गया की मस्जिद एक गहरी साजिश के बाद गिराया गया था। साजिश करने वाले लोगों पर मुकदमा चलाने की शिफारिश भी की गयी।
इसके बाद क्या हुआ?
पहली FIR के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट की सलाह पर अयोध्या मामलों के लिए एक नई विशेष अदालत का गठन किया गया। लेकिन दूसरी एफआईआर का मुकदमा रायबरेली में ही चलता रहा। साल 1993 के 5 अक्टूबर को सीबीआई ने एफआईआर संख्या 198 को शामिल करने के लिए एक संयुक्त आरोप पत्र दाखिल किया क्योंकि दोनों मामले एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। बाला साहेब ठाकरे, कल्याण सिंह, चंपत राय, धरमदास, महंत नृत्य गोपाल दास और कुछ अन्य लोगों पर आरोप लगे।
इसके बाद 8 अक्टूबर 1993 को उत्तर प्रदेश सरकार ने एक नई अधिसूचना जारी की जिसमें बाकी मामलों के साथ आठ नेताओं के ख़िलाफ़ एफ़आईआर संख्या 198 को जोड़ दिया गया। इसके बाद बाबरी मस्जिद ढहाए जाने से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई लखनऊ की स्पेशल कोर्ट में होने लगी। इसके बाद लखनऊ कोर्ट ने साल 1996 में सभी मामलों में आपराधिक साजिश की धारा जोड़ने का आर्डर दिया। सीबीआई के द्वारा पूरक आरोपपत्र दाखिल किया जाता है।
इसके बाद विशेष अदालत ने आदेश दिया कि सभी मामलों का एक कृत्य से जुड़े होने के कारण इनका संयुक्त मुकदमा चलाया जाए, लेकिन लालकृष्ण आडवाणी और अन्य अभियुक्तों ने हाईकोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी। इसके बाद 12 फरवरी 2001 को हाईकोर्ट ने संयुक्त चार्जशीट को सही तो माना लेकिन आदेश दिया कि लखनऊ अदालत को अभियुक्तों वाला दूसरा केस सुनने का अधिकार नहीं है, क्योंकि उसके गठन की अधिसूचना में वह केस नंबर शामिल नहीं था।
माना जा रहा था कि आडवाणी व अन्य अभियुक्तों के राजनीतिक और कानूनी दांवपेच व तकनीकी समस्याओं के कारण यह केस अटका हुआ है। अभियुक्तों के वकील ने यह साबित कर दिया कि उत्तर प्रदेश सरकार की प्रशासनिक चूक के कारण अभियुक्तों के खिलाफ गलत आरोप लगाए गए हैं। इसके बाद हाईकोर्ट ने सीबीआई को ऑर्डर दिया कि अगर उनके पास अभियुक्तों के खिलाफ सबूत हैं तो वह रायबरेली कोर्ट में सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल करे।
लाल कृष्ण आडवाणी हुए बरी
रायबरेली कोर्ट में लालकृष्ण आडवाणी की तरफ से याचिका सुनवाई स्वीकार की गयी जिसके बाद उन्हें आरोपों से बरी कर दिया गया। इसका कारण यह था कि उनके केस चलाने के लिए पर्याप्त सबूत मौजुद नहीं थे। इसके बाद साल 2005 में इलाहाबाद कोर्ट ने आदेश दिया कि लालकृष्ण आडवाणी और अन्य सभी अभियुक्तों पर केस चलता रहेगा। यह मामला कोर्ट में आगे तो बढ़ता रहा लेकिन उनमें आपराधिक साजिश के कोई आरोप नहीं थे। साल 2005 में रायबरेली कोर्ट में आरोप तय किए गए और साल 2007 में पहली गवाही हुई।
इस घटना के करीब 2 साल बाद लिब्राहन आयोग ने भी अपनी नौ सौ पेज की रिपोर्ट सौंपी जिसके बाद इसे सार्वजनिक भी कर दिया गया था। इस रिपोर्ट के अनुसार संघ परिवार, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और बीजेपी के प्रमुख नेताओं को उन घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार माना, जिनकी वजह से बाबरी विध्वंस की घटना हुई। इसके बाद साल 2010 में दोनों मामलों को अलग करने का निचली अदालत का फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट में बरकरार रखा गया और केस आगे बढ़ाया गया।
हाई कोर्ट ने कहा था कि यह मामले इसलिए अलग रखे जाने चाहिए क्योंकि कारसेवकों को भड़काने वाले नेता मंदिर से काफी दूर थे जबकि मुख्य आरोपी कारसेवक थे। ऐसे में दोनों मामलों को अलग रखा जाएगा। 20 मार्च साल 2012 में सीबीआई ने ‘सुप्रीम कोर्ट’ एक हलफनामा दायर किया जिसमें दो मामलों की एक साथ सुनवाई करने के पक्ष में दलील दी गयी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 में एलके आडवाणी, उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी और कल्याण सिंह सहित वरिष्ठ बीजेपी नेताओं को नोटिस जारी किया जिसमें उनसे बाबरी मस्जिद विध्वंस केस में आपराधिक साज़िश की धारा नहीं हटाने की सीबीआई की याचिका पर जवाब देने को कहा गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
इसके बाद साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया। बाबरी मस्जिद विध्वंस में साजिश के आरोप फिर से लगाए गए और दोनों मामलों की सुनवाई एक साथ करने के आदेश दिए गए। सुप्रीम कोर्ट ने गतिरोध को खत्म करते हुए अभियुक्तों पर आरोप फिर से लगाने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले की सुनवाई करने के लिए 2 साल की डेडलाइन दी, जिसे बाद में 9 महीने के लिए और बढ़ा दिया गया। इसके बाद कुर्ला संकट के दौरान इस अवधि को थोड़ा और बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हर दिन सुनवाई करते हुए इसे 31 अगस्त तक सुनवाई पूरी करने के निर्देश दिए।
ऐसे में बाबरी मस्जिद के विध्वंस अंकेश में 49 लोगों को अभियुक्त बनाया गया जिनमें से 17 लोगों की मौत हो चुकी है और बाकी के बचे हुए लोगों के साथ सीबीआई कार्यवाही कर चुकी है। इन बचे हुए लोगों में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार, उमा भारती, कल्याण सिंह, रामविलास वेदांती, साध्वी ऋतंभरा, चंपत राय, नृत्य गोपाल दास जैसे बड़े लोग शामिल हैं।