Bahula Chaturthi 2020: भारत में बहुला चतुर्थी को लेकर काफी मान्यतायें प्रचलित हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी तिथि के दिन बहुला चतुर्थी मनाई जाती है। बहुला चतुर्थी को भारतीय संस्कृति में माता और सन्तान के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। बहुला चतुर्थी को लेकर एक मान्यता यह है की इस दिन माता अपने सन्तान की सुरक्षा के लिए व्रत रखती हैं।
संतान को शनि के कोप से बचाने के लिए किया जाता है व्रत
बहुला चतुर्थी का व्रत उन अभिभावकों के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता हैं जिनकी सन्तान पर शनि शनि की साढे़साती और शनि की ढैया चल रही हो। मान्यता है कि बहुला चतुर्थी का व्रत करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और उनका कोप शांत होता है। स्वास्थ्य खराब होने पर सन्तान से भी यह व्रत कराया जाता है।
गायों को अपने हाथों से खिलाया जाता है हरा चारा
बहुला चतुर्थी के दिन सनातन संस्कृति में गाय को विशेष महत्व दिया है। इस दिन गाय को अपने हाथों से हरा चारा खिलाया जाता हैं। मान्यता है कि बहुला चतुर्थी के दिन गाय को हरा चारा खिलाने से घर में समृद्धि आती है। बहुला चतुर्थी का दिन गौ सेवा पर ही आधारित होता है। इस दिन गौशालाओं में गायो को विशेष आहार भी दिया जाता है।
इस तरह से किया जाता है बहुला चतुर्थी का व्रत
बहुला चतुर्थी का व्रत करने के लिये किसी भी तरह के अन्न और चावल से बने भोजन का सेवन नहीं करना चाहिये। इसके अलावा गाय का दूध या दूध से बने पदार्थ भी ग्रहण नहीं करने चाहिए। इसके बाद में सांझ के समय पर भगवान गणेश, शेर, गाय और उसके बछड़े की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा की जाती हैं।
जो खाद्य सामग्री और पकवान घर में बनाये जाते है वही गौ माता को प्रसाद स्वरूप चढाये जाते हैं। इसके अलावा सत्तू को भी प्रसाद स्वरूप चढ़ाया जा सकता है। प्रसाद चढ़ाने के बाद गौ माता की पूजा की जाती है और वह प्रसाद व्रत करने वाली महिला ग्रहण करती है। रात के समय में भगवान गणेश, चंद्रमा, एवं चतुर्थी माता को अर्घ्य दिया जाता है।
क्या है बहुला चतुर्थी का महत्व?
बहुला चतुर्थी के व्रत को रखने के पीछे एक कथा बहुत प्रचलित है। जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया था तब कामधेनु गाय भी श्रीकृष्ण की सेवा करने के लिए बहुला बनकर उनके पास पहुच गयी थी। श्रीकृष्ण बहुला को पहचान गए थे। श्रीकृष्ण ने बहुला की परीक्षा लेने की सोची।
एक बार बहुला वन में थी, तब श्रीकृष्ण ने एक सिंह का अवतार धारण कर लिया और बहुला (कामधेनु गाय) को पकड़ लिया। बहुला ने सिंह से विनम्रतापूर्ण विनती की ‘हे वनराज, में अपने बच्चे को दूध पिलाकर वापस आउंगी और आपका आहार बन जाउंगी’। तब सिंह रूप में श्रीकृष्ण ने कहा कि ‘अगर तुम वापस नहीं आयी तो मैं भूखा रह जाऊंगा’।
तब बहुला ने सत्य की शपथ ली। वह अपने बछड़े के पास गयी और उसे दूध पिलाकर वापस आने लगी। अपने बच्चे से मोह होने के बाद भी वह सत्य के मार्ग पर चलती रही। श्रीकृष्ण बहुला से अति प्रसन्न हुए और उसे आशीर्वाद दिया की अब हर भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी को उसकी पूजा होगी। इसी कारण से बहुला चतुर्थी को गौ माता की पूजा की जाती है।