What Is MSP, How Many Farmers Get MSP: भारत एक विकाशशील देश है जिसकी आय का आज भी मुख्य भाग प्राथमिक व्यवसाय जैसे की खेती, पशुपालन आदि से ही आता है। ऐसे में खेती करने वाले किसान देश का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। केंद्र सरकार हाल ही में कुछ नए विधेयक लायी है, जिससे कृषि के क्षेत्र में कुछ सुधार आ सके, और किसानों का आर्थिक स्तर ऊपर उठ सके। इन विधेयकों को लोकसभा के द्वारा पारित किया जा चुका है। लेकिन कुछ प्रदेशों के किसान और विपक्षी राजनीतिक दलों का कहना है कि वह सरकार के नए कानून एमएसपी को खत्म कर देंगे। बता दें एमएसपी किसानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण योजना है, जो सालों से चल रही है।
कृषि मंत्री का कहना है कि सरकार गारंटी देगी कि किसानों को MSP मिलेगा।
निजी व्यापार आज भी होता है, लेकिन किसानों को दिया जाने वाला मूल्य MSP की तुलना में काफी कम होता है। अगर कृषि मंत्री जादुई रूप से MSP सुनिश्चित कर सकते हैं, तो उन्होंने अब तक ऐसा क्यों नहीं किया?
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) September 20, 2020
प्रधानमंत्री ने लगाया विपक्षी पार्टी पर गुमराह करने का आरोप
केंद्र सरकार के द्वारा कृषि के क्षेत्र में सुधार के लिए लाए गए नए कानूनों का विपक्षी दल काफी पहले से विरोध कर रहे हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि केंद्र सरकार के यह नए विधेयक MSP का सफाया कर देंगे। इस वजह से कई किसान सड़कों पर उतरकर एमएसपी के लिए इन नए विधेयकों का विरोध कर रहे हैं। ऐसे में प्रधामंत्री ने पलटवार करते हुए कहा है कि ‘जो कई दशकों तक सत्ता में रहे वह किसानों से झूठ बोल रहे हैं’। यानी कि प्रधानमंत्री ने विपक्षी दलों पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर यह साफ कर चुके हैं कि इन नए विधेयकों से एमएसपी खत्म नहीं होगा।
अब ये दुष्प्रचार किया जा रहा है कि सरकार के द्वारा किसानों को MSP का लाभ नहीं दिया जाएगा।
ये भी मनगढ़ंत बातें कही जा रही हैं कि किसानों से धान-गेहूं इत्यादि की खरीद सरकार द्वारा नहीं की जाएगी।
ये सरासर झूठ है, गलत है, किसानों को धोखा है: PM
— PMO India (@PMOIndia) September 18, 2020
What Is MSP: जानें क्या है एमएसपी?
एमएसपी के लिए कई प्रदेश जैसे की पंजाब और हरियाणा में लोकसभा द्वारा पारित किए गए केंद्र सरकार के नए विधायकों का जबरदस्त विरोध किया जा रहा है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर यह एमएसपी (MSP) क्या है? एमएसपी का पूरा नाम मिनिमम सपोर्ट प्राइस (Minimum Support Price) है। यह मिनिमम सपोर्ट प्राइस किसानों को उनकी फसलों के लिए दिया जाता है। अगर बाजार में फसलों की कीमत कम भी हो, तो सरकार को किसान मिनिमम सपोर्ट प्राइस में फसल बेच सकते हैं। मिनिमम सपोर्ट प्राइस अथवा न्यूनतम समर्थन मूल्य से बाजार में होने वाले उतार चढ़ाव से किसान बचा रहता है, और उसे न्यूनतम कीमतें मिलती रहती है।
बता दें कि हर साल जब फसल बेचने का समय आता है तो सरकार सीएसीपी (कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइजेस) की दरख्वास्त पर मिनिमम प्राइस सपोर्ट तय करती है। यदि किसी फसल की ज्यादा पैदावार होती है तो उसकी कीमतें कम हो जाती है। ऐसे में सरकार एक उचित कीमत तय करती है, जिस पर किसानों की फसलों को खरीदा जाता है। यानी कि जब किसानों को बाजार में फसल की कीमत कम मिलती है, तब एमएसपी के रूप में एक फिक्स एश्योर्ड प्राइस का काम करती है।
कैसे होता है एमएसपी से किसानों को लाभ?
हाल ही में कुछ आंकड़े सामने आए थे, जिनके अनुसार पिछले 5 सालों में एमएसपी (Minimum Support Price) का लाभ उठाने वाले किसानों की संख्या दोगुनी हो चुकी है। यह मोदी सरकार के कार्यकाल में हुआ था। जब किसी प्रकार की ज्यादा पैदावार होती है, तो किसानों को बाजार में उसकी उचित रकम नहीं मिलती है, ऐसे में वह एमएसपी के जरिए अपनी फसल से उचित रकम प्राप्त कर पाते हैं। इसलिए किसानों के लिए एमएसपी काफी महत्वपूर्ण है। अगर भारत के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की मानें तो सरकार के द्वारा पारित किए जा रहे है, नए विधेयकों से MSP को कोई नुकसान नहीं है। MSP सदैव जारी रहेगी।
प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी की प्राथमिकता में हमेशा गाँव, गरीब व किसान रहा है। उनके द्वारा लिया गया हर फैसला देश हित में होता है।
किसान बिल 2020 भी इसी दिशा में किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लक्ष्य को पूरा करने वाला है।
झूठ से बचें…#JaiKisan #AatmaNirbharKrishi pic.twitter.com/NiRmjf5SKH
— Narendra Singh Tomar (@nstomar) September 18, 2020
एमएसपी कब लागू की गयी?
1950 और 1960 के दशक में किसान काफी परेशान रहा करते थे। क्योंकि जब किसी फसल का बम्पर उत्पादन होता था, तो उन्हें उसकी अच्छी कीमतें नहीं मिल पाती थी। इस वजह से किसान आंदोलन करने लगे थे। ऐसे फ़ूड मैनेजमेंट एक बड़ा संकट बनता जा रहा था। इसके बाद 1964 में एलके झा के नेतृत्व में फूड-ग्रेन्स प्राइज कमेटी का निर्माण किया गया। कमेटी के सुझावों के आधार पर 1965 में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की स्थापना की गई और एग्रीकल्चरल प्राइजेस कमीशन (एपीसी) का निर्माण भी हुआ। यह दोनों संस्थाएं संपूर्ण देश में खाद्य सुरक्षा का प्रशासन करने में मदद करती है। इसके अलावा एफसीआई एमएसपी पर अनाज खरीद कर अपने गोदामों में स्टोर करती है। इसके बाद पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम (पीडीएस) के जरिये जनता तक अनाज को रियायती दरों पर पहुंचाया करती हैं। पीडीएस के तहत पूरे देश में करीब 5 लाख दुकानें हैं जहाँ पर लोगों को रियायती दरों पर अनाज बांटा जाता है। 1985 में एपीसी का नाम बदलकर सीएपीसी किया गया।